राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती
पापी पेटः
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थानेदार बरक़तउल्ला लाठी चार्ज के समय चिल्ला-चिल्लाकर हुक्म दे रहे थे 'मारो सालों को', 'आए हैं स्वराज लेने', 'लगे खूब कस कसके'। परन्तु अपने क्वार्टर्स में पहुँचते-पहुँचते उनका जोश ठंडा पड़ गया। वे जबान के खराब अवश्य थे पर हृदय के उतने खराब न थे। दरवाजे के अन्दर पैर रखते ही उनकी बीवी ने कहा- 'देखो तो यह गफूर कैसा फूट-फूटकर रो रहा है। क्या किया है आज तुमने? बार-बार पूछने पर भी यही कहता है कि 'अब्बा ने गोपू को जान से मार डाला है', मेरी तो समझ में ही नहीं आता कि क्या हुआ?'
सुनते ही थानेदार साहब सर थामकर बैठ गए। गोपाल बहुत सीधा और प्रेमी लड़का था। थानेदार का लड़का और गोपाल एक ही कक्षा में पढ़ते थे और दोनों में खूब दोस्ती थी। थानेदार और उनकी बीबी दोनों ही गोपाल को अपने लड़के की ही तरह प्यार करते थे। थानेदार को बड़ा अफ़सोस हुआ, बोले “आग लगे ऐसी नौकरी में। गिरानी का जमाना है वरना मैं तो इस्तीफ़ा देकर चल देता। पर करें तो क्या करें? घर में बीवी-बच्चे हैं, बूढ़ी माँ है, इनका निर्वाह कैसे हो? नौकरी बुरी जरूर है पर पेट का सवाल उससे भी बुरा है। आज 60) माहवार मिलते हैं, नौकरी छोड़ने पर कोई बीस रुपल्ली को भी न पूछेगा ; पापी पेट के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी, पर हाँ इस हाय-हत्या से बचने का एक उपाय है। तीन महीने की मेरी छुट्टी बाक़ी है। तीन महीने बहुत होते हैं। तब तक यह तूफ़ान निकल ही जायगा। यह सोचकर उसने छुट्टी की दरख्वास्त दूसरे ही दिन दे दी।